हिन्दू धर्म के अनुसार वर्षभर में 24 एकादशिया होती है, वही मल मास आता है। तब यह 26 एकादशिया हो जाती है। सभी एकादशियों का अपना अलग ही महत्व है। ऐसे ही आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहते है। इस एकादशी का व्रत करने से सभी पाप नष्ट होते है। इस वर्ष 2020 में योगिनी एकादशी 17 जून, दिन बुधवार को मनायी जाएगी।
योगिनी एकादशी व्रत कथा –
पौराणिक कथाओ के अनुसार भगवान श्री कृष्ण पांडु पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर को सभी एकादशियो की कथा सुना रहे थे। तब युधिष्ठिर श्री कृष्ण से बोलते है, हे राजन !आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम और महत्व क्या है। तब भगवान श्री कृष्ण कहते हैं। हे धर्मराज ! युधिष्ठिर आषाढ़ माह की एकादशी को योगिनी एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी के व्रत से सभी पापों से मुक्ति मिलती है।मनुष्य इस आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत करते है तो उसे जीवन में सुख का आनंद प्राप्त होता है। उसकी सभी कामनाएँ पूर्ण होती है, इस एकादशी पर सभी को दान अवश्य करना चाहिये। युधिष्ठिर इतनी बात सुनकर भगवान श्री कृष्ण से बोलते है।हे प्रभु ! इस एकादशी का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। मैं इसे जानने का इच्छुक हूँ।
श्रीं कृष्ण कहते हैं, धर्मराज युधिष्ठिर मैं तुम्हें एक पौराणिक कथा सुनाता हूँ। स्वर्गलोक में कुबेर नाम का एक राजा हुआ करता था। वह बड़ा ही धार्मिक था। कुबेर भगवान शिवजी का बहुत ही बड़ा भक्त था। कुबेर भगवान शिवजी की रोज यर्थात पूजा किया करता था। किसी प्रकार की कोई भी विपत्ति क्यों न आ जाये वह शिवजी की पूजा अवश्य करता था। कुबेर शिवजी को हर रोज पुष्पों की माला अवश्य चढ़ाया करता था। उसे पुष्पों की माला हेम नाम का माली हर रोज लाकर दिया करता था। उसकी पत्नी अति सुन्दर थी। वह अपनी पत्नी विशालाक्षी से बहुत प्रेम करता था। एक दिन की बात है, हेम पुष्पों की माला लेकर आ रहा था परन्तु उसे लगा की अभी राजा की पूजा में समय है। मैं क्यों न घर चला जाऊ तब वह घर जाता हैं और अपनी सुंदर पत्नी के वश में आकर समय का अनुभव नहीं कर पाता है। तब राजा कुबेर शिवजी की पूजा में देरी होने से अपने सैनिकों को माली हेम की खोज करने के लिए भेजते है। तब सैनिक खोज करते-करते उसके घर पहुँच जाते है। तब वह हेम को उसकी पत्नी के साथ रमण करते हुए देखते है,और उसे राजा के समक्ष लाकर उसकी करतूत बताते है। तब हेम राजा से माफी मांगते है। परन्तु राजा अति क्रोधित होकर उसे श्राप देते है कि तू नारी वियोग से मरेगा तथा तुझे कोढ़ी होने का श्राप देता हूँ। तब राजा के श्रापवश हेम कोढ़ी हो जाता है। तथा देवलोक से धरती पर आ जाता है। वह कोढ अवस्था में भटकते -भटकते मार्कण्डेय ऋषि के पास जा पहुँचता हैं। तब ऋषिवर उससे उसकी इस दुर्दशा का कारण पूछते है। हेम,ऋषि को अपने पूरे अपराध की घटना सुनाता है,और ऋषि से उपाय बताने को बोलता है। मार्कण्डेय ऋषि हेम से कहते है, पुत्र तुमने बिना कोई संकोच के अपनी पूरी सत्य बात बतायी है। तब ऋषि उसे आषाढ़ माह की योगिनी एकादशी के बारे में बताते है। हेम से बोलते हैं,पुत्र इस एकादशी का व्रत करो इससे तुम्हारें सभी पाप नष्ट हो जाएंगे और तुम्हें सुख की प्राप्ति होगी।
तब माली हेम योगिनी एकादशी का व्रत पूरे विधि विधान से करता है। योगिनी एकादशी पर शिवजी की आराधना करता है। तत्पश्चात वह कोढ़ मुक्त हो जाता है तथा उसे देवलोक की प्राप्ति हो जाती है।
योगिनी एकादशी महत्व –
आषाढ़ माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी जिसे योगिनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन व्रत करने से मनुष्य को पापों से मुक्ति मिलती है। तथा मनुष्य इस व्रत को करने से अपने जीवन में सुख का विलास कर पाता है। इस दिन व्रत रखने से 80 ब्राह्मण का दान करने जितना फल प्राप्त होता है। यह बात भगवान श्री कृष्ण ने स्वंय धर्मराज युधिष्ठिर को बतायी थी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार योगिनी एकादशी व्रत का बहुत अधिक महत्व है।
शुभ मुहूर्त –
समय | दिन | वर्ष | |
प्रारंभ तिथि | 05:40 | मंगलवार | 2020 |
समाप्ति | 07:50 | बुधवार | 2020 |
पूजा विधि –
- योगिनी एकादशी का व्रत एक दिन पूर्व दशमी से ही प्रारंभ हो जाता है।
- दशमी के दिन रात्रि में सात्विक भोजन ही करना चाहिए।
- एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करना चाहिए।
- योगिनी एकादशी के दिन व्रत अवश्य धारण करना चाहिये।
- इस दिन भगवान शिव की पूजा अर्चना करना होता है।
- भगवान शिव की पूजा में धूप, दीप चंदन,धतुरा अक्कौआ का पुष्प, बील पतरी अवश्य अर्पण करना चाहिए।
- इस दिन ब्राह्मण व जरूरत मंद को दान देना चाहिये।
एकादशी माता की आरती
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता॥
ॐ जय एकादशी…॥
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी॥
ॐ जय एकादशी…॥
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई॥
ॐ जय एकादशी…॥
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है।
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै॥
ॐ जय एकादशी…॥
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै॥
ॐ जय एकादशी…॥
विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी।
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की॥
ॐ जय एकादशी…॥
चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली।
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली॥
ॐ जय एकादशी…॥
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी।
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी॥
ॐ जय एकादशी…॥
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी॥
ॐ जय एकादशी…॥
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए॥
ॐ जय एकादशी…॥
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला॥
ॐ जय एकादशी…॥
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी॥
ॐ जय एकादशी…॥
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया॥
ॐ जय एकादशी…॥
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।
शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी॥
ॐ जय एकादशी…॥
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै॥
ॐ जय एकादशी…॥