हिन्दू कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन वट सावित्री अमावस्या मनायी जाती हैं। इस दिन वट (बरगद) के वृक्ष की पूजा करके सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान का जीवनदान माँग लाई थी। इसलिए इसे वट सावित्री अमावस्या कहा जाता हैं। इस दिन हिन्दू विवाहित महिला अपने पति की दीर्घायु व संतान प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं। इस वर्ष 2020 में वट सावित्री व्रत (अमावस्या ) 22 मई दिन शुक्रवार को मनायी जाएगी ।
वट सावित्री व्रत कथा –
हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भद्र देश के राजा अश्वपति नामक महान धर्मात्मा हुए। उनकी कोई संतान नहीं थी। वह इस बात से काफी दुखी थे। उन्होनें संतान की प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या की जिससे सावित्री देवी प्रसन्न हुई,और राजा को संतान सुख का वरदान दिया। राजा की इस प्रतिज्ञा के फल से उनको एक कन्या प्राप्त हुई। जिसका नाम सावित्री रखा गया।
सावित्री एक सर्वगुण कन्या थी। वह हर कार्य में निपुण थी। एक दिन सावित्री अपने वर की खोज में भ्रमण करते हुए एक वन में जा पहुँची। उस वन में उसकी भेंट राजा धुमत्सेन से हुई। उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने उन्हें अपने पति के रूप में स्वीकार करने का निर्णय लिया।
इस बात को जानकर नारद जी सावित्री के पिता अश्वपति के पास पहुँचे ओर उन्हें बताया की आपकी पुत्री जिस वर की कामना कर रही हैं। वह एक वर्ष ही जीवित रहेगा। उसकी आयु अल्प समय तक ही सीमित हैं।
अश्वपति अपनी पुत्री सावित्री को बहुत समझाते हैं , पर वह नहीं मानती।और उनका विवाह सत्यवान से कर दिया जाता हैं। समय बीतता गया सावित्री की चिंता बढ़ती जा रही थी। वह नारद जी के कहने पर पूजा व व्रत करना शुरू कर देती हैं।
एक दिन सत्यवान जंगल की ओर जा रहा था। तब सावित्री भी अपने सास-ससुर की आज्ञा लेकर उसके पीछे – पीछे पहुँची।तब सत्यवान एक वृक्ष के ऊपर लकड़ी काटने चढ़ता हैं। अचानक उसे सिर में असहनीय दर्द सा प्रतीत होता हैं। सावित्री, सत्यवान को नीचे आने का आग्रह करती हैं।
सत्यवान को वट वृक्ष के नीचे विश्राम करने को कहती हैं।।तब अचानक से उसे आकाश से भैंसासुर पर विराजमान यमराज को आते हुए देखती हैं। ओर वह भविष्य में आने वाली विवधा को स्मरण करती हैं। तब यमराज उसके पति सत्यवान को ले जाते हैं। तब सावित्री भी उनके पीछे जाने लगती हैं। सावित्री काफी दुखी रहती हैं।
सावित्री की ऐसी दशा देख यमराज उसे वरदान माँगने को कहते हैं। तब सावित्री अपने दृष्टिहीन सास व ससुर के नेत्रों की रोशनी माँगती हैं। और वह उनके पीछे यथावत् जाने लगती हैं। तब यमराज उसे एक ओर वरदान माँगने को कहते हैं। सावित्री अपने ससुर का राज्य सिंहासन वापस उन्हें मिल जाने का वरदान माँगती हैं। जो किसी के द्वारा उनसे ले लिया गया था। तब यमराज सावित्री को उनके पीछे आने से मना करते हैं। सावित्री कहती हैं पति के पीछे चलना एक पतिव्रता नारी का कर्त्तव्य हैं। नारी को सदैव अपने पति की सहायता के लिए उसके पीछे खड़े रहना चाहिए। और मैं अपने कर्त्तव्य का पालन कर रही हूँ।
यमराज सावित्री की इस बात से व्याकुल होकर उसे एक और वरदान को लेने के लिए कहते हैं। तब सावित्री उनसे सौ पुत्र के वरदान की कामना करती हैं। तब यमराज सावित्री को तर्थास्तु कहते हैं। ओर इस वरदान को पूरा करने के लिए यमराज अपने दिए हुए वरदान के अनुसार सत्यवान को नया जीवन दान देते हैं। इस बात से सत्यवान व सावित्री अत्यंत प्रसन्नता अनुभव करते हैं।जब वह घर लौटते हैं, तब वह देखते हैं कि यमराज के वरदान द्वारा नेत्रहीन सास-ससुर के आँखों की रोशनी देख खुश हो जाते हैं। तथा उन्हें उनका राज पाठ भी मिल जाता हैं।
अतः सावित्री के द्वारा किए हुए व्रत व वट पूजा से उसे अपने पति सत्यवान का नया जीवन प्राप्त हो जाता हैं। इस कारण इस दिन हिन्दू विवाहित महिलाएँ भी सौभाग्यवती व संतान प्राप्ति के लिए इस दिन वट वृक्ष की पूजा करती हैं तथा व्रत रखती हैं।
वट सावित्री व्रत का महत्व –
वट सावित्री अमावस्या के दिन हिंदू धर्म की महिलाएँ अपने पति की लम्बी आयु के लिए व्रत रखती हैं। तथा इस दिन व्रत रखने से संतान की प्राप्ति होती हैं। तथा पति की दीर्घायु की कामना पूर्ण होती हैं। इस वट अमावस्या पर महिलाएँ वट वृक्ष के नीचे बैठकर पूजा करती हैं। तथा सावित्री की कथा सुनती हैं।
शुभ मुहूर्त –
वट सावित्री अमावस्या | 22 मई, दिन शुक्रवार |
प्रारंभ तिथि | 09:35 बजे, 21 मई 2020 |
समाप्ति | 11:08 बजे, 22 मई 2020 |
वट सावित्री पूजा विधि –
- वट सावित्री अमावस्या के दिन किसी भी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए ।
- उसके पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए।
- इस दिन सौंहागन महिलाओं को सुहाग के पूर्ण आभूषण धारण करना चाहिए।
- इस दिन वट (बरगद) के वृक्ष की पूजा की जाती हैं।
- इस दिन मिट्टी के यमराज भैंसासुर पर विराजे व सावित्री को बनाकर उनकी पूजा की जाती हैं।
- पूजन के लिए हल्दी,कुमकुम,चंदन धूप,दीप फूल आदि सामग्री प्रयोग की जाती हैं।
- महिलाओं द्वारा एक सूत्र के साथ वृक्ष की परिक्रमा करते हुए उसे वृक्ष में बाँधते हैं।
- उसके पश्चात वृक्ष के नीचे पूजन के बाद सावित्री की कथा सुनी जाती हैं।
इस वट सावित्री अमावस्या पर व्रत रखने से पति की दीर्घायु व संतान सुख की प्राप्ति होती हैं। यह व्रत हिंदू धर्म की महिलाओं के लिए बहुत ही खास माना जाता हैं।
Originally posted 2020-05-03 06:59:11.