हिन्दू कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ पूर्णिंमा ज्येष्ठ माह की शुक्ल पूर्णिंमा को मनायी जाती हैं। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ माह हिन्दू वर्ष का तीसरा महीना कहलाता हैं।इस दिन व्रत करने से सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। इस वर्ष 2020 में ज्येष्ठ पूर्णिंमा 5 जून, दिन शुक्रवार को मनायी जाएगी।
ज्येष्ठ पूर्णिंमा महत्व –
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ज्येष्ठ पूर्णिंमा हिन्दू धर्म की बहुत ही खास पूर्णिंमा कहलाती हैं।इस समय भीषण गर्मी का प्रकोप रहता हैं।इस पूर्णिंमा को जल का विशेष महत्व होता हैं। चारो ओर सूखा पड़ जाता हैं। ज्येष्ठ पूर्णिंमा का व्रत करने से सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना की जाती हैं। ज्येष्ठ पूर्णिंमा पर किसी पवित्र नदी में स्नान का विशेष महत्व होता हैं। इस दिन सभी पवित्र नदियों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ आती हैं। श्रद्धालु तट पर स्नान के बाद वही सत्यनारायण भगवान की पूजा कर बाते हैं। तथा ब्रह्मणों को दान देते हैं।
ज्येष्ठ माह की पूर्णिंमा को वट पूर्णिंमा व्रत के रूप में भी मनाया जाता हैं। यह व्रत स्त्री विशेष होता हैं। इस दिन महिलाएँ अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत करती हैं। तथा इस व्रत को करने से संतान सुख की प्राप्ति होती हैं।
ज्येष्ठ माह की पूर्णिंमा के दिन सावित्री की कथा सुनी जाती हैं। इस दिन महिलाएँ वट पूर्णिंमा के व्रत के रूप में रहती हैं तथा वट वृक्ष की पूजा करती हैं। तथा उसी वृक्ष के नीचे सावित्री की कथा सुनायी जाती हैं।
वही सावित्री जिसने अपने पति को स्वयं यमराज से वापस ले आयी थी। तथा सावित्री ने इसी वट वृक्ष की पूजा की थी। तथा व्रत रखा था। जिससे सत्यवान को नव जीवन प्राप्त हुआ था। तब से हिन्दू महिलाएँ अपने सुहाग की लम्बी आयु के लिए इस पूर्णिंमा को व्रत रखती हैं।तथा इस पूर्णिंमा पर व्रत तप,दान अवश्य करना चाहिए।
शुभ मुहूर्त –
पूर्णिंमा प्रांरभ तिथि | 5 जून 2020,दिन शुक्रवार 03:15 से |
समाप्ति तिथि | 6 जून 2020, दिन शनिवार 12:41 तक |
पूजा विधि –
- ज्येष्ठ पूर्णिंमा पर किसी पवित्र नदी में स्नान का बहुत महत्व हैं।
- स्नान ध्यान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- इस दिन श्वेत वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता हैं।
- जिस तट पर स्नान किया वही सत्यनारायण की पूजा करना व ब्राह्मणों को दान करना बहुत ही लाभदायक माना जाता हैं।
- जो महिलाएँ वट पूर्णिंमा व्रत करती हैं। उन्हें वट वृक्ष की पूजा करना चाहिए।
- वट वृक्ष के नीचे वट पूर्णिंमा विशेष सावित्री की कथा सुनना चाहिए।
- इस दिन भगवान विष्णु की आराधना की जाती हैं।
- इस दिन व्रत करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती हैं।
पूर्णिंमा की आरती
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय…॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय…॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय…॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय…॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय…॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय…॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय…॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय…॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय…॥