हिन्दू धर्म के अनुसार मोहिनी एकादशी वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनायी जाती हैं। वैशाख माह की यह एकादशी श्रेष्ठ मानी जाती हैं। इस दिन व्रत रखने से समस्त पाप नष्ठ हो जाते हैं। परिणाम स्वरुप वह मोक्ष को प्राप्त करता हैं।

मोहिनी एकादशी नाम कैसे पड़ा?
पौराणिक धर्म ग्रंथो के अनुसार वैशाख शुक्ल एकादशी के दिन समुद्र मंथन के पश्चात अमृत कलश प्राप्त करने के लिए असुरो तथा देवताओं के बीच विवाद उत्पन हो गया था। भगवान अपने शक्ति बल के साथ उनसे जीत हासिल नहीं करना चाहते थे। तब भगवान विष्णु ने एक स्री का रूप धारण किया था। जिससे सभी असुर, दानवो का मन मोहित हो गया था। तथा सभी देवताओं ने अम्रत रस ग्रहण कर अमर हो गए ।वैशाख शुक्ल की एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी रुप धारण किया था। इस कारण इसे मोहिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता हैं। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना की जाती हैं।
मोहिनी एकादशी व्रत कथा–
हिन्दू धर्म ग्रंथो के अनुसार सरस्वती नदी के पास भद्रावती नगरी में एक वैश्य रहता था। वह बड़ा ही धनवान व धर्मात्मा था। वह भगवान विष्णु का परम् भक्त भी था। उसके पाँच पुत्र थे। उसका सबसे बड़ा पुत्र बहुत ही पापी था। उसके बुरे कर्मो के कारण उसके माता – पिता ने उसे त्याग दिया था।
उसके भाइयों ने भी उसे त्याग दिया था। वह अकेला और असहाय हो गया था। उसने भूख मिटाने के लिए सभी प्रकार के बुरे कर्म किए। तत्पश्चात व्याकुल और परेशान रहने लगा।
एक दिन भटकते हुए ऋषि मुनि के आश्रम जा पहुँचा। वहा ऋषि से आग्रह करने लगा मैं आपकी शरण में हूँ ,आप मुझें कुछ उपाय बताये। तब ऋषि ने उसे वैशाख शुक्ल की एकादशी जिसे मोहिनी एकादशी कहा जाता हैं, इस दिन व्रत रखने तथा विधि से पूजन करने की सलाह दी ।उसने यथावत व्रत रखा व वह पाप मुक्त होकर विष्णु लोक चला गया। उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती हैं।
शुभ मुहूर्त –
तिथि प्रारंभ | रविवार, 3 मई 2020 09:09 से |
समाप्ति | सोमवार, 4 मई 2020 06:12 तक |
मोहिनी एकादशी व्रत विधि–
मोहिनी एकादशी व्रत को दशमी के दिन से ही पालन करना होता हैं। एक दिन पूर्व रात्रि में सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। तथा एक ही समय भोजन करना चाहिए। इसके पश्चात एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए तथा स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। तत्पश्चात लाल वस्त्र से एक कलश स्थापित करना चाहिए। विधिवत् पूजन करना चाहिए भगवान विष्णु की प्रतिमा को जल से तथा पंचाम्रत से स्नान कराना चाहिए। उसके बाद धूप, दीप और फूलों से पूजन करे। उसके पश्चात व्रत की कथा सुनी जाती हैं। इस दिन असत्य नहीं बोलना चाहिए। दूसरे दिन द्वादशी पर किसी ब्राह्मण व जरूरत मंद को भोजन आदि दान कर व्रत को खोलना चाहिए। इस व्रत को करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। तथा मोह बंधन से मुक्ति मिलती हैं। मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।
विष्णु मंत्र
ॐ अं वासुदेवाय नम:
ॐ आं संकर्षणाय नम:
ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:
ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:
ॐ नारायणाय नम:
ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान।
यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।
विष्णु स्तुति
शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम्।
लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम्।।
यं ब्रह्मा वरुणैन्द्रु रुद्रमरुत: स्तुन्वानि दिव्यै स्तवैवेदे:।
सांग पदक्रमोपनिषदै गार्यन्ति यं सामगा:।
ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यति यं योगिनो
यस्यातं न विदु: सुरासुरगणा दैवाय तस्मै नम:।।
विष्णु आरती
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय…॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय…॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय…॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय…॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय…॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय…॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय…॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय…॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय…॥