हिन्दू मान्यता के अनुसार सूर्य का राशि मे परिवर्तन करना एक घटना है। प्रत्येक माह सूर्य अलग-अलग राशियो में प्रवेश करता है, तथा इस चक्र को संक्रांति कहते है। सूर्य के प्रत्येक राशि मे प्रवेश करने से राशि के जातको पर इसका असर पड़ता है। जब सूर्य वृषभ राशि से मिथुन राशि मे प्रवेश करता है, तब इसे मिथुन संक्रांति कहते है। मिथुन संक्रांति को सभी जगह विशेष पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष 2020 में 14 जून, दिन रविवार को मिथुन संक्रांति मनायी जाएगी।
मिथुन संक्रांति कथा –
Quick Tour
मिथुन संक्रांति एक पर्व है। जो सभी स्थानों मे अलग-अलग रूप से मनाया जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार हर माह महिलाओं का मासिक धर्म होता है। मानव विकास के लिए जरुरी है। इसी प्रकार इस पर्व मे तीन दिन तक पृथ्वी व धरती माँ का मासिक धर्म माना जाता है। जो धरती के विकास का प्रतीक माना गया है। तीन दिन तक धरती पर किसी भी प्रकार का कोई कार्य नहीं किया जाता है। जिस प्रकार महिलाओं से मासिक धर्म के समय काम नहीं करवाया जाता है। वैसे ही धरती माँ को तीन दिनों तक आराम दिया जाता है। चौथे दिन धरती माँ अर्थात भू देवी को स्नान कराके उनकी पूजा की जाती है। चौथे दिन उनका मासिक धर्म खत्म हो जाता है, ऐसा माना जाता है। इस दिन सिलबट्टे को स्नान कराकर उसकी पूजा की जाती है। सिलबट्टे को धरती माँ व भू देवी माना जाता है। इस पर्व को राजा परबा भी कहा जाता है।
मिथुन संक्रांति से वर्षा का आगमन –
मिथुन संक्राति के पर्व से वर्षा का आगमन माना जाता है। इस दिन जब सूर्य वृषभ से मिथुन राशि मे प्रवेश करता है, तो इससे भूमि पर सबसे बड़ा प्रभाव यह पड़ता है कि इस पर्व से धरती पर वर्षा का प्रारंभ हो जाता है। इस दिन सूर्य की अराधना की जाती है। इस दिन किसान वर्षा के आगमन पर भू देवी का शुक्रिया करते है तथा अच्छी वर्षा की कामना करते है। जिससे अच्छी वर्षा हो।
मिथुन संक्रांति उत्सव –
मिथुन संक्रांति सभी स्थानों पर अलग-अलग रूप से मनायी जाती है। उसी प्रकार मिथुन संक्रांति उड़ीसा में एक उत्सव के रूप में मनायी जाती है। इस दिन उड़ीसा में कई प्रकार के आयोजन किये जाते है। मिथुन संक्रांति के दिन खेल प्रतियोगिता, कई प्रकार के कार्यक्रम,महिलाओं के लिए विशेषकर यह कार्यक्रम रखा जाता हैं। मिथुन संक्रांति का उत्सव महिलाओं के लिए रखा जाता है। इस दिन महिलाएंँ अपने सभी कामों से आजाद रहती है। महिलाओं को आराम देने के लिए ये उत्सव मनाया जाता है। घर की सभी महिलाएं व बेटियाँ झूले डालती है, तथा सभी वर्षा का आंनद झूलकर व गीत गाकर लेती है। यह मिथुन संक्रांति का उत्सव बड़े हर्षोंल्लास के साथ मनाया जाता है।
मिथुन संक्रांति कई रूप में मनाई जाती है –
मिथुन संक्रांति को कईं स्थानों पर अलग-अलग नामों के रूप में मनायी जाती है।
- संक्रमानम
- अषाढ़
- मिथुनम ओंठ
- राजा परबा
उड़ीसा में यह पर्व चार दिन का होता है। इसके पहले दिन को पहिली राजा, दूसरे दिन मिथुना संक्रांति, तीसरे दिन भू दाहा व चौथे तथा अंतिम दिन वसुमती स्नान के रूप में मनाया जाता हैं।
शुभ मुहूर्त –
प्रारंभ तिथि | 14 जून2020,दिन रविवार |
पुण्यकाल | 12:22 पी. एम से 07:20 पी.एम |
महापुण्यकाल | 05:01पी.एम से 07:20 पी. एम |
समाप्ति | 15 जून 2020,दिन सोमवार ,12:10 तक |
मिथुन संक्रांति पूजा विधि –
- मिथुन संक्रांति के पर्व पर सर्वप्रथम पवित्र नदीं मे स्नान कर स्वच्छ वस्र धारण करना चाहिए |
- इस दिन सूर्य देव की पूजा की जाती है |
- इस दिन राजा परबा के रूप में भी मनाया जाता है |
- इस दिन सिलबट्टे (पीसने का पत्थर )को दूध से व पवित्र जल से स्नान कराना चाहिये |
- सिलबट्टे पर हल्दी,चन्दन,रोली,चावल चढ़ाकर उसकी पूजा करना चाहिए |
- सिलबट्टे को भू देवी व जगत जननी माना जाता है |
- इस दिन महिलायें सभी प्रकार का श्रंगार करती हैं |
- इस दिन भगवान विष्णु व लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है |
- इस दिन जरूरत मंद को दान अवश्य करना चाहिए |