सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाना एक अहम घटना है। तथा हिंदू धर्म के अनुसार सूर्य का राशि में परिवर्तन करना संक्रांति कहलाता है। इसी प्रकार जब सूर्य मकर राशि में होता है तब सूर्य उत्तरायण में होते हैं, परंतु जब वह जैसे ही कर्क राशि में आ जाते है, तो इसे दक्षिणायन कहा जाता है। सूर्य का कर्क राशि में प्रवेश करना कर्क संक्रांति व श्रावण संक्रांति के नाम से जानी जाती है। इस वर्ष 2020 में यह संक्रांति 16 जुलाई दिन गुरुवार को मनाई जाएगी।
पर्व | दिन | दिनांक |
कर्क व श्रावण संक्रांति | गुरुवार | 16 जुलाई 2020 |

कर्क संक्रांति पर्व-
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हर माह में सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है। जिससे राशि जातकों पर इसका प्रभाव पड़ता है। कर्क संक्रांति के पूर्व जब सूर्य मकर राशि में होते है। अतः कर्क राशि में प्रवेश करने हेतु पास होते है। तब इस समय को बहुत शुभ माना जाता है। इस समय देवी-देवताओं के शक्ति अधिक प्रभावी मानी जाती है। इसलिए इस समय सबसे ज्यादा शुभ कार्य किए जाते है।
अतः जब सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है, तब इसे कर्क संक्रांति पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस समय भगवान विष्णु निद्रा की स्थिति में चले जाते है। इसलिए सभी शुभ कार्य बंद कर दिए जाते है। इस समय राक्षसों अर्थात बुरी शक्तियों का प्रकोप ज्यादा होता है। इस कारण सभी शुभ मांगलिक कार्य बाधित कर दिए जाते है।
एक और तथ्य के अनुसार-
ऐसा माना जाता है कि कर्क संक्रांति लगने पर असुरों की शक्तियाँ बढ़ जाती है। तथा देवताओं की शक्ति कम हो जाती है। इस समय जिस मनुष्य की मृत्यु होती है, उसे कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है। उसे आसानी से स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होती है।
कर्क संक्रांति को श्रावण संक्रांति भी कहा जाता है। जब सभी देवताओं की शक्तियाँ कम हो जाती है। तब एक ही मार्ग होता है। देवताओं की शक्तियाँ बढ़ाने का। श्रावण माह में शिव की आराधना की जाती है। अतः शिव आराधना पूजन-पाठ यदि मनुष्य इस माह में करते हैं, तो देवताओं की शक्तियों को बढ़ाया जा सकता है। वैसे ही श्रावण माह में भोलेनाथ को प्रसन्न करना चाहिए। श्रावण माह खुशियों का पर्व होता है। जिसमें चारों ओर हरियाली छायी होती है। हर तरफ खुशनुमा माहौल होता है।
शिव की अराधना-
हिन्दू धर्म के अनुसार श्रावण माह में भोलेनाथ की आराधना की जाती है। यही समय होता है, जब मनुष्य को पुण्य की प्राप्ति होती है। इस माह में श्रावण व कर्क संक्रांति लगने पर भोलेनाथ का पूजन-पाठ प्रारंभ कर दिया जाता है। इस समय शिवपुराण, शिव चालीसा इत्यादि का पाठ करना चाहिए। इस माह में शिव जी की पूजन करना बहुत ही शुभकारी व लाभकारी माना जाता है।
सूर्य की अराधना-
कर्क संक्रांति लगने पर सूर्य दक्षिणायन की स्थिति में चले जाते हैं। इस समय सूर्य की आराधना का विशेष महत्व माना जाता है। इस कर्क संक्रांति पर सूर्य नारायण भगवान की पूजन करना चाहिए। इस समय मानव को सूर्य मंत्र का जाप व सूर्य को स्मरण कर उनकी पूजन करना चाहिए। इससे सूर्य देवता सभी रोग व कष्ठो को दूर करते है।
सूर्य की स्थिति-
सूर्य का उत्तरायण होना देवताओं का दिन माना जाता है। अतः इस समय देवताओं की शक्ति अधिक होती है। परंतु जब सूर्य मकर से कर्क राशि में प्रवेश करते है, तब देवताओं की रात मानी जाती है। इस समय देवताओं की शक्तियाँ कम हो जाती है। कर्क संक्रांति प्रारंभ होने से रात बड़ी व दिन छोटे हो जाते है। अतः देत्यओं की शक्तियाँ ओर अधिक प्रभावी हो जाती है।
शुभ मुहूर्त
पुण्यकाल | 05:34 am से 11:03 am तक |
महापुण्यकाल | 08:45 am से 11:03 am तक |
कर्क संक्रांति पूजन विधि-
कर्क संक्रांति व श्रावण संक्रांति प्रारंभ होने से ही भोलेनाथ की आराधना आरंभ हो जाती है। इस दिन प्रातःकाल उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। तत्पश्चात श्रावण माह में प्रतिदिन शिवलिंग बनाकर उनका अभिषेक करना चाहिए। शिव जी पर बेलपत्री, धतूरा का फूल, पंचाम्रत आदि अर्पित करना चाहिए। अतः हर रोज शिव पुराण, शिव चालीसा शिव मंत्र “ऊँ नमः शिवायः” का जाप करना चाहिए। इससे सभी प्रकार के पुण्य की प्राप्ति होती है। शिव जी की सदा कृपा दृष्टि बनी रहती है।
शिव चालीसा
॥दोहा॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान। कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
॥चौपाई॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥
मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। येहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट ते मोहि आन उबारो॥
मात-पिता भ्राता सब होई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु मम संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदा हीं। जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥दोहा॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा। तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान। अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
शिव मंत्र
भगवान शिव का मूल मंत्र :-
|| ॐ नमः शिवाय ||
महामृत्युंजय मंत्र :-
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
महामृत्युंजय गायत्री मंत्र :-
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः ॐ सः जूं हौं ॐ ||
रूद्र गायत्री मंत्र : –
ॐ तत्पुरुषाय विदमहे, महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।
शिव उपासना मंत्र
ॐ जुं स:
ॐ हौं जूं स:
ॐ ह्रीं नम: शिवाय
ॐ ऐं नम: शिवाय
ॐ पार्वतीपतये नमः
ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय