हिंदू धर्म के अनुसार श्रावण माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरियाली तीज कहते हैं. इस हरियाली तीज को श्रावणी तीज, हरितालिका तीज, कजरी तीज व छोटी तीज आधी नाम से जाना जाता है. यह पर्व मुख्यतः महिलाओं के लिए होता है. इस पर्व पर नवविवाहित महिलाओं को अपने ससुराल से मायके बुलाया जाता है तथा इस दिन माता पार्वती व शिव जी के मिलन के रूप में भी यह पर्व को मनाया जाता है. इस वर्ष 2020 में हरियाली तीज 23 जुलाई दिन गुरुवार को मनाई जाएगी.
हरियाली तीज व्रत कथा-
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पौराणिक कथा के अनुसार श्रावण माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का मिलन हुआ था. माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तप किए थे. माता पार्वती ने 108 बार जन्म लिया था. तब जाकर पार्वती रूप में एक गुफा में कड़ी तपस्या करने के बाद भगवान शिव ने प्रसन्न होकर माता पार्वती की बात सुनी थी तथा इस दिन माता पार्वती को भगवान शिव ने अपनी अर्ध्दशक्ति के रूप में स्वीकार किया था. इसलिए इस दिन को बहुत ही खास माना जाता है तथा भगवान शिव ने सभी महिलाओं को इस दिन सौभाग्यवती होने का वरदान दिया है. इसलिए इस दिन सभी महिलाएँ व्रत रखती हैं तथा भगवान शिव माता पार्वती जी की मूर्ति बनाकर उनकी पूजा करती हैं.
एक और मान्यता के अनुसार हरियाली तीज अर्थात हरियाली तीज नाम से ही ज्ञात है कि इस दिन पृथ्वी पर चारों तरफ हरियाली होती है मानो धरती प्रकृति की गोद में झूल रही हो चारों खुशियों का माहौल होता है जगह-जगह महिलाएं, लड़कियाँ डाल-डाल पर झूला डालती है.
सिंधरा देना-
इस दिन नवविवाहित महिलाएँ अपने ससुराल से मायके आती है. इन्हें के मायके द्वारा सुहाग की सभी सामग्री दी जाती है. महिलाएँ अपने हाथों में मेहंदी लगाती है तथा पैरों में अलता लगाती है. तथा सुहाग की पूर्ण आभूषण पहनती है जो उन्हें अपने मायके द्वारा दिए जाते है. मायके द्वारा दी गई सामग्री को सिंधरा कहा जाता है. अपने मायके में बैठिया डाली पर झूला डालती है. लड़कियाँ अपने आंगन को शादी के बाद मायके आकर फिर खुशियों से भर देती है.
महत्व-
हरियाली तीज का पर्व महिलाओं के लिए अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है इस दिन महिलाएँ व्रत रखती है. इससे इनके पति को दीर्घायु प्राप्त होती है. इस दिन महिलाएँ सौभाग्यवती का भगवान शिव से आर्शीवाद प्राप्त करती है. इस दिन चारो ओर हरियाली का महिलाएँ गीत गाकर, झूला झूलकर व नृत्य करके पूर्ण आनंद लेती है. यह पर्व प्रेम व सौंदर्य का त्यौहार माना जाता है इसलिए महिलाएँ इसदिन तैयार होती है.
शुभ मुहूर्त
तिथि | समय | दिन | दिनांक |
प्रारंभ | 07:22 pm | बुधवार | 22 जुलाई 2020 |
समाप्ति | 05:03 pm | गुरुवार | 23 जुलाई 2020 |
पूजन विधि-
- इस दिन प्रातःकाल उठकर पवित्र नदी में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए.
- माता पार्वती व भगवान शिव तथा गणेश जी की प्रतिमा बनाकर उनकी पूजा करना चाहिए.
- इसदिन महिलाओं को सभी प्रकार का श्रंगार करना चाहिए.
- इस दिन महिलाएँ व्रत धारण करती है जिससे उन्हें पति की दीर्घायु का वरदान प्राप्त होता है.
- इस दिन भगवान शिव व माता पार्वती की पूजन कर हरियाली तीज की कथा सुनना चाहिए.
- इस दिन नवविवाहित कन्या को सिंधरा देने की प्रथा है.

माता पार्वती जी की आरती
जय पार्वती माता जय पार्वती माता
ब्रह्म सनातन देवी शुभ फल कदा दाता।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
अरिकुल पद्मा विनासनी जय सेवक त्राता
जग जीवन जगदम्बा हरिहर गुण गाता।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
सिंह को वाहन साजे कुंडल है साथा
देव वधु जहं गावत नृत्य कर ताथा।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
सतयुग शील सुसुन्दर नाम सती कहलाता
हेमांचल घर जन्मी सखियन रंगराता।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमांचल स्याता
सहस भुजा तनु धरिके चक्र लियो हाथा।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
सृष्टि रूप तुही जननी शिव संग रंगराता
नंदी भृंगी बीन लाही सारा मदमाता।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
देवन अरज करत हम चित को लाता
गावत दे दे ताली मन में रंगराता।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
श्री प्रताप आरती मैया की जो कोई गाता
सदा सुखी रहता सुख संपति पाता।
जय पार्वती माता मैया जय पार्वती माता
शिवजी की आरती
ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे। त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी। त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे। सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी। सुखकारी दुखहारी जगपालनकारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा। पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा। भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला। शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी। नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे। कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥