हिंदू कैलेंडर के अनुसार शुक्ल पक्ष के दौरान वैशाख माह के सातवें दिन (सप्तमी तिथि) को गंगा सप्तमी मनाई जाती हैं। इस दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई थी। इस कारण इस पवित्र तिथि को गंगा जयंती के रूप में मनाया जाता हैं, इस वर्ष 2020 में यह जयंती 30 अप्रैल को मनाई जाएगी।
गंगा कथा –
ऐसी मान्यता हैं कि भगवान विष्णु ने धरती पर एक वामन (ब्राह्मण) का रूप धारण किया था। राजा बलि बहुत ही समृद्ध और शक्तिशाली राजा था। वह भगवान विष्णु का परम् भक्त था । उसने अपनी इस भक्ति से इतनी शक्ति पा ली थी कि राजा इन्द्र को अपना स्वर्ग का सिन्हासन खतरे में नजर आने लगा था।
इन्द्र , भगवान विष्णु के पास मदद माँगने पहुँचे । राजा बलि यज्ञ कर रहे थे। तब उस समय भगवान विष्णु वामन रूप धारण कर बलि के पास पहुँचे। बलि को ज्ञात था कि वह स्वंय भगवान विष्णु हैं, क्योंकि उपस्थित उसके गुरु शुक्राचार्य ने विष्णु को पहचान लिया था। राजा बलि अपने दरबार में आए ब्राह्मण को कभी खाली हाथ नहीं लौटाते थे। उन्होंने ब्राह्मण से मनचाहा वर माँगने का आग्रह किया।
ब्राह्मण ने उनसे तीन कदम ज़मीन माँगी । राजा तैयार हो गया, ब्राह्मण को तीन कदम ज़मीन नाप लेने को कहा। तभी ब्राह्मण ने एक विशाल आकार रूप धारण किया। उन्होनें पहले कदम में पूरी धरती माप ली, तथा दूसरे कदम में पूरा आकाश। अब तीसरे कदम के लिए कुछ बचा नहीं तब राजा बलि ने अपना सर आगे किया। तीसरा कदम बलि के सर पर रख बलि को पताल लोक भेज दिया, तब भगवान विष्णु का पैर आकाश नाप रहा था। तब स्वयं ब्रंह्म ने उनके चरण धोए थे,
क्योंकि यह भगवान विष्णु के चरण जो थे । उस जल को ब्रंह्म ने अपने कमण्डल में इकट्ठा कर लिया था। यही पवित्र जल गंगा के रूप में विख्यात हैं। गंगा, ब्रंह्म की पुत्रीं कहलायी जाती हैं।
मोक्षदायिनी गंगा –
गंगा हिन्दूओं की सबसे पवित्र नदी हैं। इसके पवित्र जल से पाप से मुक्त हो जाते हैं। हिंदू धर्म में गंगा को पूज्यनीय माना जाता हैं। गंगा के जल में अस्थिया विसर्जित की जाती हैं। गंगा के तट पर स्थित ऋषिकेस, हरिद्वार, इलाहाबाद वाराणसी तीर्थस्थल के रूप में विख्यात हैं। यह स्थल बहुत ही पवित्र माने जाते हैं।
गंगा सप्तमी पूजन –
गंगा सप्तमी के दिन गंगा मैय्या का पुनर्जन्म माना जाता हैं। इसलिए इस दिन गंगा जयंती के रूप में मनाया जाता हैं। इस दिन गंगा में स्नान का बहुत महत्व होता हैं। गंगा में स्नान कर गंगा मैय्या की प्रतिमा की पूजा की जाती हैं तथा भगवान शिव की आराधना भी इस दिन शुभ मानी जाती हैं।
शुभ मुहूर्त –
तिथि प्रारंभ | बुधवार, 29 अप्रैल 2020 3:12 से |
समाप्तिं तिथि | गुरुवार 30 अप्रैल 2020, 02:39 तक |
माँ गंगा आरती
ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता।
जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता।
ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता।
चंद्र सी ज्योति तुम्हारी, जल निर्मल आता।
शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता।
ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता।
पुत्र सगर के तारे, सब जग को ज्ञाता।
कृपा दृष्टि हो तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता।
ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता।
एक बार जो प्राणी, शरण तेरी आता।
यम की त्रास मिटाकर, परमगति पाता।
ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता।
आरति मातु तुम्हारी, जो नर नित गाता।
सेवक वही सहज में, मुक्ति को पाता।
ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता।
गंगा जी मंत्र
गंगा स्नान का मंत्र
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु।।
‘ॐ नमो भगवति हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे माँ पावय पावय स्वाहा’
यह गंगाजी का सबसे पवित्र पावन मंत्र है।
इसका अर्थ है कि, हे भगवति गंगे! मुझे बार-बार मिल, पवित्र कर, पवित्र कर…
इस मंत्र से गंगाजी के लिए पंचोपचार और पुष्पांजलि समर्पण करें।
गंगा चालीसा
दोहा-
जय जय जय जग पावनी जयति देवसरि गंग।
जय शिव जटा निवासिनी अनुपम तुंग तरंग॥
चौपाई
जय जग जननि अघ खानी, आनन्द करनि गंग महरानी।
जय भागीरथि सुरसरि माता, कलिमल मूल दलनि विखयाता।
जय जय जय हनु सुता अघ अननी, भीषम की माता जग जननी।
धवल कमल दल मम तनु साजे, लखि शत शरद चन्द्र छवि लाजे।
वाहन मकर विमल शुचि सोहै, अमिय कलश कर लखि मन मोहै।
जडित रत्न कंचन आभूषण, हिय मणि हार, हरणितम दूषण।
जग पावनि त्रय ताप नसावनि, तरल तरंग तंग मन भावनि।
जो गणपति अति पूज्य प्रधाना, तिहुं ते प्रथम गंग अस्नाना।
ब्रह्म कमण्डल वासिनी देवी श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवी।
साठि सहत्र सगर सुत तारयो, गंगा सागर तीरथ धारयो।
अगम तरंग उठयो मन भावन, लखि तीरथ हरिद्वार सुहावन।
तीरथ राज प्रयाग अक्षैवट, धरयौ मातु पुनि काशी करवट।
धनि धनि सुरसरि स्वर्ग की सीढ़ी, तारणि अमित पितृ पद पीढी।
भागीरथ तप कियो अपारा, दियो ब्रह्म तब सुरसरि धारा।
जब जग जननी चल्यो लहराई, शंभु जटा महं रह्यो समाई।
वर्ष पर्यन्त गंग महरानी, रहीं शंभु के जटा भुलानी।
मुनि भागीरथ शंभुहिं ध्यायो, तब इक बूंद जटा से पायो।
ताते मातु भई त्रय धारा, मृत्यु लोक, नभ अरु पातारा।
गई पाताल प्रभावति नामा, मन्दाकिनी गई गगन ललामा।
मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनि, कलिमल हरणि अगम जग पावनि।
धनि मइया तव महिमा भारी, धर्म धुरि कलि कलुष कुठारी।
मातु प्रभावति धनि मन्दाकिनी, धनि सुरसरित सकल भयनासिनी।
पान करत निर्मल गंगाजल, पावत मन इच्छित अनन्त फल।
पूरब जन्म पुण्य जब जागत, तबहिं ध्यान गंगा महं लागत।
जई पगु सुरसरि हेतु उठावहिं, तइ जगि अश्वमेध फल पावहिं।
महा पतित जिन काहु न तारे, तिन तारे इक नाम तिहारे।
शत योजनहू से जो ध्यावहिं, निश्चय विष्णु लोक पद पावहिं।
नाम भजत अगणित अघ नाशै, विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशै।
जिमि धन मूल धर्म अरु दाना, धर्म मूल गंगाजल पाना।
तव गुण गुणन करत सुख भाजत, गृह गृह सम्पत्ति सुमति विराजत।
गंगहिं नेम सहित निज ध्यावत, दुर्जनहूं सज्जन पद पावत।
बुद्धिहीन विद्या बल पावै, रोगी रोग मुक्त ह्वै जावै।
गंगा गंगा जो नर कहहीं, भूखे नंगे कबहूं न रहहीं।
निकसत की मुख गंगा माई, श्रवण दाबि यम चलहिं पराई।
महां अधिन अधमन कहं तारें, भए नर्क के बन्द किवारे।
जो नर जपै गंग शत नामा, सकल सिद्ध पूरण ह्वै कामा।
सब सुख भोग परम पद पावहिं, आवागमन रहित ह्वै जावहिं।
धनि मइया सुरसरि सुखदैनी, धनि धनि तीरथ राज त्रिवेणी।
ककरा ग्राम ऋषि दुर्वासा, सुन्दरदास गंगा कर दासा।
जो यह पढ़ै गंगा चालीसा, मिलै भक्ति अविरल वागीसा।
दोहा-
नित नव सुख सम्पत्ति लहैं, धरैं, गंग का ध्यान।
अन्त समय सुरपुर बसै, सादर बैठि विमान॥
सम्वत् भुज नभ दिशि, राम जन्म दिन चैत्र।
पूण चालीसा कियो, हरि भक्तन हित नैत्र॥
Originally posted 2020-04-26 11:16:06.